भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हथौड़े का गीत / केदारनाथ अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 14: पंक्ति 14:
 
जैसा चाहे वैसा मोड़ !
 
जैसा चाहे वैसा मोड़ !
  
:::मार ह्थौड़ा,  
+
:::मार हथौड़ा,  
  
 
:::कर-कर चोट !
 
:::कर-कर चोट !

00:20, 31 दिसम्बर 2007 का अवतरण


मार हथौड़ा,

कर-कर चोट !

लाल हुए काले लोहे को

जैसा चाहे वैसा मोड़ !

मार हथौड़ा,
कर-कर चोट !
थोड़े नहीं-- अनेकों गढ़ ले
फ़ौलादी नरसिंह करोड़ ।

मार हथौड़ा,

कर-कर चोट !

लोहू और पसीने से ही

बंधन की दीवारें तोड़ ।

मार हथौड़ा,
कर-कर चोट !
दुनिया की जाती ताकत हो,
जल्दी छवि से नाता जोड़ !