भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"हथौड़े का गीत / केदारनाथ अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 14: | पंक्ति 14: | ||
जैसा चाहे वैसा मोड़ ! | जैसा चाहे वैसा मोड़ ! | ||
− | :::मार | + | :::मार हथौड़ा, |
:::कर-कर चोट ! | :::कर-कर चोट ! |
00:20, 31 दिसम्बर 2007 का अवतरण
मार हथौड़ा,
कर-कर चोट !
लाल हुए काले लोहे को
जैसा चाहे वैसा मोड़ !
- मार हथौड़ा,
- कर-कर चोट !
- थोड़े नहीं-- अनेकों गढ़ ले
- फ़ौलादी नरसिंह करोड़ ।
मार हथौड़ा,
कर-कर चोट !
लोहू और पसीने से ही
बंधन की दीवारें तोड़ ।
- मार हथौड़ा,
- कर-कर चोट !
- दुनिया की जाती ताकत हो,
- जल्दी छवि से नाता जोड़ !