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"अनुभूतियाँ / नरेश अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर
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− | |संग्रह=सबके लिए सुंदर आवाजें / नरेश अग्रवाल | + | |संग्रह=सबके लिए सुंदर आवाजें / नरेश अग्रवाल; वे चिनार के पेड़ / नरेश अग्रवाल |
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13:15, 9 मई 2011 के समय का अवतरण
सचमुच हमारी अनुभूतियाँ
नाव के चप्पू की तरह बदल जाती हैं हर पल
लगता है पानी सारे द्वार खोल रहा है ख़ुशियों के
चीजें त्वरा के साथ आ रही हैं जा रही हैं
गाने की मधुर स्वर लहरियाँ गूँजती हुई रेडियो से
मानों झील के भीतर से ही आ रही हों
हम पानी के साथ
बिलकुल साथ-साथ
और नाव को धीरे-धीरे बढ़ाता हुआ नाविक
मिला रहा है गाने के स्वर के साथ अपना स्वर
और हम डूब चुके हैं पूरी तरह से
यहाँ की सुन्दरता में।