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जो सच कहें तो ये कुल सल्तनत हमारी है / गुलाब खंडेलवाल
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17:35, 12 अगस्त 2011
अभी तो हमको रुलाने का खेल ज़ारी है
कभी तो सेज पे
दुल्हन के
दुलहन की
, कभी मरघट में
गुलाब! तुमने भी क्या ज़िन्दगी गुज़ारी है!
<poem>
Vibhajhalani
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