भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जो सच कहें तो ये कुल सल्तनत हमारी है / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
जो सच कहें तो ये कुल सल्तनत हमारी है
पड़े हैं पाँवों में तेरे, ये ख़ाकसारी है
सुबह जो एक भी मिलती है ज़िन्दगी की हमें
तमाम उम्र की इस बंदगी से भारी है
वो एक बात जो होँठों पे आके ठहरी है
वो एक बात तेरी हर अदा से प्यारी है
पता नहीं कि घड़ी प्यार की कब आयेगी
अभी तो हमको रुलाने का खेल ज़ारी है
कभी तो सेज पे दुलहन की, कभी मरघट में
गुलाब! तुमने भी क्या ज़िन्दगी गुज़ारी है!