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"दरद दिसावर भाग-1 / भागीरथसिंह भाग्य" के अवतरणों में अंतर

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सावण आयो सायनी खेता नाचै मोर ।  
 
सावण आयो सायनी खेता नाचै मोर ।  
 
म्हारै नैणा रात दिन गळ गळ जावै मोर ॥  
 
म्हारै नैणा रात दिन गळ गळ जावै मोर ॥  
 
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*चिथ्योडी- दबी कुचली * रळ – मिलना *धुक सक्यो -मनाया जा सका
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*मैफलाँ – महफिल,पार्टी *आपजी – पिताजी *सीर- हिस्सा *आळ
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पताळ जिसका कोई ओर छोर नही हो (अनंत) *पाती – पत्र
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*मरवण – राजस्थान की एतिहासिक नायिका ( प्रेमिका)
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*काळी कोसा – बहुत ज्यदा दूर *पूग – पहूंच *सायनी – समान उम्र ( नायिका)</poem>
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05:28, 15 सितम्बर 2011 का अवतरण

लोग न जाणै कायदा ना जाणै अपणेस ।
राम भलाईँ मौत दे मत दीजै प्रदेश ||

ना सुख चाहु सुरग रो नरक आवसी दाय।
म्हारी माटी गांव री गळियाँ जै रळ जाय॥

जोगी आयो गांव सूँ ल्यायो ओ समचार ।
काळ पड्यो नी धुक सक्यो दिवलाँ रो त्युहार् ॥

इकतारो अर गीतडा जोगी री जागीर ।
घिरता फिरतापावणा घर घर थारो सीर ॥

आ जोगी बंतल कराँ पूछा मन री बात ।
उगता हुसी गांव मँ अब भी दिन अर रात ॥

जमती हुसी मैफलाँ मद छकिया भोपाळ ।
देता हुसी आपजी अब पी कै गाळ ॥

दारू पीवै आपजी टूट्यो पड्यो गिलास ।
पी कै बोलै फारसी पड्या न एक किलास ॥

साँझ ढल्याँ नित गाँव री भर ज्याती चौपाळ ।
चिलमा धूँवा चालती बाताँ आळ पताळ ॥

पाती लेज्या डाकिया जा मरवण रै देश ।
प्रीत बिना जिणो किसो कैजे ओ सन्देश ॥

काळी कोसा आंतरै परदेशी री प्रीत ।
पूग सकै तो पूग तूँ नेह बिजोगी गीत ॥

मरवण गावै पीपली तेजो गावै लोग ।
मै बैठयो परदेश मँ भोगू रोग बिजोग ।।

सावण आयो सायनी खेता नाचै मोर ।
म्हारै नैणा रात दिन गळ गळ जावै मोर ॥