Changes

जब दधि-मथनी टेकि अरै / सूरदास

10 bytes added, 16:46, 28 सितम्बर 2007
सूरदास मन मुग्ध जसोदा, मुख दधि-बिंदु परै ॥<br><br>
जब श्यामसुन्दर दही मथनेकी मथने की मथानी पकड़कर अड़ गये, उस समय वे तो मटका पकड़कर मचल रहे थे; किंतु वासुकि नाग तथा शंकरजी शंकर जी डरने लगे, मन्दराचल भयभीत हो गया, समुद्र काँपने लगा कि कहीं फिर ये समुद्र-मन्थन न करने लगें । (वे मन-ही-मन प्रार्थना करने लगे-)`प्रभो! मथानी मत पकड़ो, कहीं प्रलय न हो जाय, अन्यथा सृष्टिकी सृष्टि की मर्यादा नष्ट हो जायगी ।' सभी देवता और दैत्य खड़े-खड़े देख रहे हैं, उसके नेत्रोंमें नेत्रों में आँसू ढुलक रहा है (कि फिर समुद्र मथना पड़ेगा) । सूरदासजी सूरदास जी कहते हैं- (यह सब तो देवलोक में हो रहा है पर गोकुलमें गोकुल में दही-मन्थनके मन्थन के कारण) श्यामके श्याम के मुख पर दहीके दही के छींटे पड़ते हैं, (यह छटा देखकर) मैया यशोदाका यशोदा का मन मुग्ध हो रहा है ।