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"क़तआत / ‘अना’ क़ासमी" के अवतरणों में अंतर

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क़तात
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रूठना मुझसे मगर ख़ुद को सज़ा मत देना
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जुल्फ़ रूख़सार से खेले तो हटा मत देना
  
अब्र बेताब होके चीख़ पड़ा
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मेरे इस जुर्म की क़िश्तों में सज़ा मत देना
बर्क़ अँगड़ाई लेके जाग उठी
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बेवफ़ाई का सिला यार वफ़ा मत देना
क़तरा-क़तरा जिगर से खूँ टपका
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रात तनहाई लेके जाग उठी
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कौन आयेगा दहकते हुए शोलों के परे
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थक के सो जाऊँ तो ऐ ख़्वाब जगा मत देना
  
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सारी दुनिया को जला देगा तिरा आग का खेल
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भड़के जज़्बात को आँचल की हवा मत देना
  
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ख़ून हो जायें न क़िस्मत की लकीरें तेरी
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मैले हाथों को कभी रंगे-हिना मत देना
  
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ओछी पलकों पे हसीं ख़्वाब सजाने वाले
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मेरी आँखों से मेरी नींद उड़ा मत देना
  
ख़ूब हरियाये हैं चने के खेत
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सोच लेना कोई तावील1 मुनासिब लेकिन
बेरियाँ फल रही हैं आ जाओ
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इस हथेली से मिरा नाम मिटा मत देना
फुरसतों के भी कुछ तक़ाज़े हैं
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छुट्टियाँ चल रही हैं आ जाओ
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17:27, 10 अप्रैल 2012 का अवतरण

रूठना मुझसे मगर ख़ुद को सज़ा मत देना
जुल्फ़ रूख़सार से खेले तो हटा मत देना

मेरे इस जुर्म की क़िश्तों में सज़ा मत देना
बेवफ़ाई का सिला यार वफ़ा मत देना

कौन आयेगा दहकते हुए शोलों के परे
थक के सो जाऊँ तो ऐ ख़्वाब जगा मत देना

सारी दुनिया को जला देगा तिरा आग का खेल
भड़के जज़्बात को आँचल की हवा मत देना

ख़ून हो जायें न क़िस्मत की लकीरें तेरी
मैले हाथों को कभी रंगे-हिना मत देना

ओछी पलकों पे हसीं ख़्वाब सजाने वाले
मेरी आँखों से मेरी नींद उड़ा मत देना

सोच लेना कोई तावील1 मुनासिब लेकिन
इस हथेली से मिरा नाम मिटा मत देना

शब्दार्थ
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