भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
क़तआत / ‘अना’ क़ासमी
Kavita Kosh से
अब्र बेताब होके चीख़ पड़ा
बर्क़ अँगड़ाई लेके जाग उठी
क़तरा-क़तरा जिगर से खूँ टपका
रात तनहाई लेके जाग उठी
ख़ूब हरियाये हैं चने के खेत
बेरियाँ फल रही हैं आ जाओ
फुरसतों के भी कुछ तक़ाज़े हैं
छुट्टियाँ चल रही हैं आ जाओ
शब्दार्थ
<references/>