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बनियों ने समाजवाद को जोखा है / शमशेर बहादुर सिंह
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05:15, 30 सितम्बर 2007
गहरा सौदा है काल भी चोखा है
दुकानों
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नई खुली हैं आज़ादी की
कैसा साम्राज्यवाद का धोखा है !
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