भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बनियों ने समाजवाद को जोखा है / शमशेर बहादुर सिंह
Kavita Kosh से
बनियों ने समाजवाद को जोखा है
गहरा सौदा है काल भी चोखा है
दुकानें नई खुली हैं आज़ादी की
कैसा साम्राज्यवाद का धोखा है !