भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हैदराबाद धमाकों पर / सरदार अंजुम" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार = सरदार अंजुम |संग्रह= }} {{KKCatghazal}} <poem>...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
  
|रचनाकार = सरदार अंजुम  
+
|रचनाकार=सरदार अंजुम  
  
 
|संग्रह=
 
|संग्रह=
पंक्ति 12: पंक्ति 12:
  
 
<poem>
 
<poem>
 
 
1).
 
1).
 
अपाहिज बनके जीने की अदा अच्छी नहीं लगती  
 
अपाहिज बनके जीने की अदा अच्छी नहीं लगती  
पंक्ति 26: पंक्ति 25:
  
 
फरवरी 2013 में हैदराबाद धमाकों पर  
 
फरवरी 2013 में हैदराबाद धमाकों पर  
 
 
</poem>
 
</poem>

14:48, 13 अप्रैल 2013 का अवतरण

साँचा:KKCatghazal

1).
अपाहिज बनके जीने की अदा अच्छी नहीं लगती
जो सूली तक न ले जाए सजा अच्छी नहीं लगती

2).
ये धमाके आम हों तो क्या करें
मौत का पैगाम हों तो क्या करें
मिल गयी थी जब हमें इनकी खबर,
कोशिशें नाकाम हों तो क्या करें
हादसे जिनमे छिपी हो दुश्मनी,
दोस्ती के नाम हों तो क्या करें

फरवरी 2013 में हैदराबाद धमाकों पर