भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हैदराबाद धमाकों पर / सरदार अंजुम
Kavita Kosh से
1).
अपाहिज बनके जीने की अदा अच्छी नहीं लगती
जो सूली तक न ले जाए सजा अच्छी नहीं लगती
2).
ये धमाके आम हों तो क्या करें
मौत का पैगाम हों तो क्या करें
मिल गयी थी जब हमें इनकी खबर,
कोशिशें नाकाम हों तो क्या करें
हादसे जिनमे छिपी हो दुश्मनी,
दोस्ती के नाम हों तो क्या करें
फरवरी 2013 में हैदराबाद धमाकों पर