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"हमजाद / रविकान्त" के अवतरणों में अंतर

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सूत के धागे से
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(मनोहर श्याम जोशी के लिए)
सुरक्षा की सीमा-रेखा बनाई
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बस्ती के
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अशंक, विश्वासी लोगों ने
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वर्षों तक
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देह के रोमछिद्रों से भी अधिक द्वार हैं
किसी ने आँख नहीं उठाई उधर
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जीवन के
सूत ही मजबूत फाटक बना रहा,
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जब तक शील का पर्दा
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अभी-अभी
'हमारी' आँखों में चमकता रहा
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किसने यह कही बहुत पुरानी सी
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हमजादों की लड़ाई में
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कोई एक जीतता है
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जरूर
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हम कभी
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अपने हमजाद के दोस्त नहीं होते
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अपनी युवा इंद्रियों के साथ
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खड़ा हूँ
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जीवन के दरवाजों पर
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कोई
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मेरी सहजताओं का दुश्मन है
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खींच लेता है मुझे
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इसकी देहरियों के भीतर से बाहर
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हजारवीं बार... लाखवीं बार...
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देह के रोमछिद्रों से भी अधिक द्वार हैं
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जीवन के, पर
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अभी-अभी किसी ने बताया है -
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हमजादों की लड़ाई में कोई एक जीतता है
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जरूर
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हम कभी अपने हमजाद के दोस्त नहीं होते
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('हमजाद ' मनोहर श्याम जोशी जी का उपन्यास भी है जिसमें व्यक्ति के साथ ही उसके भीतर उत्पन्न होने वाले एक प्रतिगामी व्यक्ति को ' हमजाद ' कहा गया है उपन्यास में इसे जिन दो अलग - अलग चरित्रों के माध्यम से दिखाया गया है वे दोनों ही प्रतिगामी हैं और एक - दूसरे के पूरक हैं)

17:10, 28 जून 2013 के समय का अवतरण

(मनोहर श्याम जोशी के लिए)

देह के रोमछिद्रों से भी अधिक द्वार हैं
जीवन के

अभी-अभी
किसने यह कही बहुत पुरानी सी
हमजादों की लड़ाई में
कोई एक जीतता है
जरूर

हम कभी
अपने हमजाद के दोस्त नहीं होते
अपनी युवा इंद्रियों के साथ
खड़ा हूँ
जीवन के दरवाजों पर

कोई
मेरी सहजताओं का दुश्मन है
खींच लेता है मुझे
इसकी देहरियों के भीतर से बाहर

हजारवीं बार... लाखवीं बार...
देह के रोमछिद्रों से भी अधिक द्वार हैं
जीवन के, पर
अभी-अभी किसी ने बताया है -
हमजादों की लड़ाई में कोई एक जीतता है
जरूर

हम कभी अपने हमजाद के दोस्त नहीं होते

('हमजाद ' मनोहर श्याम जोशी जी का उपन्यास भी है जिसमें व्यक्ति के साथ ही उसके भीतर उत्पन्न होने वाले एक प्रतिगामी व्यक्ति को ' हमजाद ' कहा गया है उपन्यास में इसे जिन दो अलग - अलग चरित्रों के माध्यम से दिखाया गया है वे दोनों ही प्रतिगामी हैं और एक - दूसरे के पूरक हैं)