भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पूरी आज़ादी / गुलाब सिंह" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब सिंह |संग्रह=बाँस-वन और बाँ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
पंक्ति 8: पंक्ति 8:
 
बढ़ई बेच रहा बन्दूकें
 
बढ़ई बेच रहा बन्दूकें
 
दर्ज़ी सिलता खादी
 
दर्ज़ी सिलता खादी
रेंग रही सड़कों पर
+
रेंग रही पक्की सड़कों पर
 
गाँवों की आबादी।
 
गाँवों की आबादी।
  

17:41, 4 जनवरी 2014 का अवतरण

बढ़ई बेच रहा बन्दूकें
दर्ज़ी सिलता खादी
रेंग रही पक्की सड़कों पर
गाँवों की आबादी।

खुले नर्सरी कान्वेन्ट
दुहराते ए बी सी डी
राम खेलावन के घर खेलें
बेबी डेज़ी स्वीटी,

चित्रहार के लिए ढूँढ़ते
चश्मे दादा-दादी।

बौनी फसलों से लम्बे
पनिकट नलकूपों के,
बरस-दर-बरस उड़ उड़ जाते
दाने सूपों से,

युकलिप्टस के तले फलेगी
कब केले की काँदी?

फटी बिवाई घिसने को
गलियों में लगे खड़ंजे,
झोपड़ियों के चूल्हों से
बाज़ार लड़ाते पंजे,

आँख मूँदने सो जाने की
है पूरी आज़ादी।