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पूरी आज़ादी / गुलाब सिंह

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बढ़ई बेच रहा बन्दूकें
दर्ज़ी सिलता खादी
रेंग रही पक्की सड़कों पर
गाँवों की आबादी।

खुले नर्सरी कान्वेन्ट
दुहराते ए बी सी डी
राम खेलावन के घर खेलें
बेबी डेज़ी स्वीटी,

चित्रहार के लिए ढूँढ़ते
चश्मे दादा-दादी।

बौनी फसलों से लम्बे
पनिकट नलकूपों के,
बरस-दर-बरस उड़ उड़ जाते
दाने सूपों से,

युकलिप्टस के तले फलेगी
कब केले की काँदी?

फटी बिवाई घिसने को
गलियों में लगे खड़ंजे,
झोपड़ियों के चूल्हों से
बाज़ार लड़ाते पंजे,

आँख मूँदने सो जाने की
है पूरी आज़ादी।