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"रात का गीत / रमेश रंजक" के अवतरणों में अंतर

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घिरने लगे नींद के बादल
 
घिरने लगे नींद के बादल
 
दुखने लगा आँख का काजल
 
दुखने लगा आँख का काजल
                शाम सो गई है ।
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अब तो रात हो गई है ।।
 
अब तो रात हो गई है ।।
  
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दीख रही अब ऐसी काली
 
दीख रही अब ऐसी काली
 
खिड़की नहीं रही जैसे --
 
खिड़की नहीं रही जैसे --
            दवात हो गई है ।
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अब तो रात हो गई है ।।
 
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फिर से होने लगे पनीले
 
फिर से होने लगे पनीले
 
घर-बाहर जैसे हल्की --
 
घर-बाहर जैसे हल्की --
            बरसात हो गई है ।
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        बरसात हो गई है ।
 
अब तो रात हो गई है ।।
 
अब तो रात हो गई है ।।
  
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तम से लड़ते हिम्मत वाले
 
तम से लड़ते हिम्मत वाले
 
वीरों की उजली सेना --
 
वीरों की उजली सेना --
            तैनात हो गई है ।
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          तैनात हो गई है ।
 
अब तो रात हो गई है ।।
 
अब तो रात हो गई है ।।
 
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22:59, 20 अगस्त 2014 के समय का अवतरण

घिरने लगे नींद के बादल
दुखने लगा आँख का काजल
               शाम सो गई है ।
अब तो रात हो गई है ।।

रंग-बिरंगी परदों वाली
जिसमें बैठी थी उजियाली
दीख रही अब ऐसी काली
खिड़की नहीं रही जैसे --
           दवात हो गई है ।
अब तो रात हो गई है ।।

कपड़े आँगन में चमकीले
दिन भर सूखे नीले-पीले
फिर से होने लगे पनीले
घर-बाहर जैसे हल्की --
         बरसात हो गई है ।
अब तो रात हो गई है ।।

जगह-जगह पर बल्ब निराले
जले रोशनी के रखवाले
तम से लड़ते हिम्मत वाले
वीरों की उजली सेना --
           तैनात हो गई है ।
अब तो रात हो गई है ।।