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दोहा / भाग 2 / रत्नावली देवी

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<poem>
सोवत सों पिय जगि गये, जगिहु गई हों सोइ।
कबहुँ कि अब रतनावलिहिं, आय जगावें मोइ।।1।।मोइ।।11।।
सुवरन पिय संग हों लसी, रतनावलि सम कांचु।
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