भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हम्मेॅ निराश नै छियौ / वसुंधरा कुमारी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= वसुंधरा कुमारी |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार= वसुंधरा कुमारी
 
|रचनाकार= वसुंधरा कुमारी
 
|अनुवादक=
 
|अनुवादक=
|संग्रह=
+
|संग्रह=सच-सच
 
}}
 
}}
 
{{KKCatAngikaRachna}}
 
{{KKCatAngikaRachna}}

10:20, 14 जून 2016 के समय का अवतरण

देखै नै छौ
समय केन्होॅ बदहवास रे हांफै छै
हवा कापै छैै
उगतेॅ दिनोॅ कै रात भ$ांपै छै
रेत निगली रहलोॅ छै नददी केॅ
आग जंगल केॅ
जंगल केॅ जानवर
शहर के कोठरी में
घुसी ऐलोॅ छै
शिकारी आदमी के शिकारोॅ मेॅ छै
केकरा पकड़बौ ? कहाँ पकड़बौ
देवता के भेषोॅ में
आकाश, पानी, हवा
घोॅर, रेल, कारोॅ में छै ।

आदमी कखनियो छटपटावेॅ पारेॅ
पानी सूखेॅ आरो पटपटावेॅ पारेॅ ।
तहियो ई मोॅन हार नै मानै छै
कोय कत्तोॅ जम्मोॅ केॅ बासुरी मेॅ हवा भरे
ऊ कृष्ण के वंशी के
मुकाबला नै करेॅ पारेॅ ।
जों जीवन क्षणिक होय छै
तेॅ मिरतुओ,
तबेॅ मिरतु के सामना मेॅ
जीवन केना हारी जाय ।
की औकरा हारी जाना चाही ?