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हम्मेॅ निराश नै छियौ / वसुंधरा कुमारी
Kavita Kosh से
देखै नै छौ
समय केन्होॅ बदहवास रे हांफै छै
हवा कापै छैै
उगतेॅ दिनोॅ कै रात भ$ांपै छै
रेत निगली रहलोॅ छै नददी केॅ
आग जंगल केॅ
जंगल केॅ जानवर
शहर के कोठरी में
घुसी ऐलोॅ छै
शिकारी आदमी के शिकारोॅ मेॅ छै
केकरा पकड़बौ ? कहाँ पकड़बौ
देवता के भेषोॅ में
आकाश, पानी, हवा
घोॅर, रेल, कारोॅ में छै ।
आदमी कखनियो छटपटावेॅ पारेॅ
पानी सूखेॅ आरो पटपटावेॅ पारेॅ ।
तहियो ई मोॅन हार नै मानै छै
कोय कत्तोॅ जम्मोॅ केॅ बासुरी मेॅ हवा भरे
ऊ कृष्ण के वंशी के
मुकाबला नै करेॅ पारेॅ ।
जों जीवन क्षणिक होय छै
तेॅ मिरतुओ,
तबेॅ मिरतु के सामना मेॅ
जीवन केना हारी जाय ।
की औकरा हारी जाना चाही ?