Changes

जो नवला मन मैं दयो नयो नेह तरु लाइ।
बिरहताप रितु बात तै जनु डारîौ डारयौ कुँभिलाइ॥427॥
रवन गवन सुनि कै स्रवन दृग देखन मिसि ठानि।
तिय अंजन धोवन लगी अँसुवन को जल आनि॥428॥
मध्या गमिष्यतपतिका
कहन चहत पिय गवन सुनि कîौ कयों न मुख ते जाइ।
लाज मदन को झगरिबो धन हिय होत लखाइ॥429॥
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader, प्रबंधक
35,148
edits