"बाड़ / पवन चौहान" के अवतरणों में अंतर
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पवन चौहान |अनुवादक= |संग्रह=किनार...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 8: | पंक्ति 8: | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | + | मेरी इस खेत के बाड़ ने | |
− | + | संभाल रखा है बहुत कुछ | |
− | + | दे रखी है सुरक्षा | |
− | + | आवारा डंगरों, कुक्कड़ों | |
+ | और उन चोरटे लोगों से भी | ||
+ | जिनकी नजर हमेशा रहती है | ||
+ | हमारी फसल, साग- सब्जी | ||
+ | फल और फूलों पर भी | ||
− | + | खेत पर सजी इस बाड़ की | |
− | + | हर गाँठ पर लगी है | |
− | हर | + | मेरी माँ के चादरु |
− | + | और पिता के साफे की लीरें | |
− | और | + | माँ की स्नेहिल छाया ने |
+ | दे रखी है मजबूती सब लकड़ियों को | ||
+ | और पिता की छत्रछाया में | ||
+ | बाड़ खड़ी है सीना तान | ||
+ | हर बाधा से लड़ने को तैयार | ||
− | + | इस बाड़ ने छुपा रखा है | |
− | + | और भी बहुत कुछ | |
− | + | मेरे नन्हे बेटे की अठखेलियाँ | |
− | + | बाड़ को बुनते-बुनते जो | |
− | + | निकल आई थी खेत पर | |
− | + | खेलती रही थी | |
− | + | बेटे के साथ | |
+ | गोधूली पलों तक | ||
+ | खेत की धूल में | ||
+ | दिलाती रही थी हमें | ||
+ | खीझ और खुशी साथ-साथ | ||
+ | उलझाती रही थी हमें | ||
+ | हर गाँठ के कसाव के साथ-साथ | ||
+ | बाड़ के पूरा होने तक | ||
− | + | बाड़ लगने की खुशी में | |
− | + | लाड़ी मेरी कहे बगैर ही | |
− | + | पिला रही है चाय बार-बार | |
− | + | क्योंकि अब नहीं चढ़नी पड़ेगीं उसे | |
− | + | तीन मंजिला घर की | |
+ | थका देने वाली सीढ़ियाँ | ||
+ | वह सुखाएगी अब कपड़े इसी बाड़ पर | ||
+ | रुकी रहेगी उसकी टांगों की पीड़ा भी | ||
+ | फूदकेगी चिड़िया भी अब इसी बाड़ पर | ||
+ | गाएगी मीठे गीत वह | ||
+ | हम सबके साथ | ||
+ | काकड़ी, कद्दू, करेले, घीए की बेलें | ||
+ | बाड़ का हाथ थामे | ||
+ | चढ़ पाएगीं अब | ||
+ | ऊँचे पेड़ की नाजुक टहनी तक | ||
+ | नापेंगी वे भी आसमान की बुलंदी | ||
+ | माँ की ममता और | ||
+ | पिता के हौंसले ने | ||
+ | संभाल रखा है | ||
+ | सब लकड़ियों को एक साथ | ||
+ | जैसे ताउम्र संभाला उन्होने | ||
+ | अपना परिवार | ||
+ | वे यहाँ भी डटे हैं | ||
+ | मुस्तैदी से | ||
+ | और बाड़ मेरी गर्व से खड़ी | ||
+ | कर रही है वादा | ||
+ | हर फूल, फल, फसल और सब्जी से | ||
+ | उनकी सुरक्षा और खुशहाली का। | ||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | + | '''नोटः लाड़ी अर्थात पत्नी | |
− | + | '''</poem> | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | नोटः | + | |
− | + | ||
− | + | ||
− | </poem> | + |
04:06, 8 अगस्त 2016 के समय का अवतरण
मेरी इस खेत के बाड़ ने
संभाल रखा है बहुत कुछ
दे रखी है सुरक्षा
आवारा डंगरों, कुक्कड़ों
और उन चोरटे लोगों से भी
जिनकी नजर हमेशा रहती है
हमारी फसल, साग- सब्जी
फल और फूलों पर भी
खेत पर सजी इस बाड़ की
हर गाँठ पर लगी है
मेरी माँ के चादरु
और पिता के साफे की लीरें
माँ की स्नेहिल छाया ने
दे रखी है मजबूती सब लकड़ियों को
और पिता की छत्रछाया में
बाड़ खड़ी है सीना तान
हर बाधा से लड़ने को तैयार
इस बाड़ ने छुपा रखा है
और भी बहुत कुछ
मेरे नन्हे बेटे की अठखेलियाँ
बाड़ को बुनते-बुनते जो
निकल आई थी खेत पर
खेलती रही थी
बेटे के साथ
गोधूली पलों तक
खेत की धूल में
दिलाती रही थी हमें
खीझ और खुशी साथ-साथ
उलझाती रही थी हमें
हर गाँठ के कसाव के साथ-साथ
बाड़ के पूरा होने तक
बाड़ लगने की खुशी में
लाड़ी मेरी कहे बगैर ही
पिला रही है चाय बार-बार
क्योंकि अब नहीं चढ़नी पड़ेगीं उसे
तीन मंजिला घर की
थका देने वाली सीढ़ियाँ
वह सुखाएगी अब कपड़े इसी बाड़ पर
रुकी रहेगी उसकी टांगों की पीड़ा भी
फूदकेगी चिड़िया भी अब इसी बाड़ पर
गाएगी मीठे गीत वह
हम सबके साथ
काकड़ी, कद्दू, करेले, घीए की बेलें
बाड़ का हाथ थामे
चढ़ पाएगीं अब
ऊँचे पेड़ की नाजुक टहनी तक
नापेंगी वे भी आसमान की बुलंदी
माँ की ममता और
पिता के हौंसले ने
संभाल रखा है
सब लकड़ियों को एक साथ
जैसे ताउम्र संभाला उन्होने
अपना परिवार
वे यहाँ भी डटे हैं
मुस्तैदी से
और बाड़ मेरी गर्व से खड़ी
कर रही है वादा
हर फूल, फल, फसल और सब्जी से
उनकी सुरक्षा और खुशहाली का।
नोटः लाड़ी अर्थात पत्नी