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"परेलीको बर्सात / रमेश क्षितिज" के अवतरणों में अंतर
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बिर्सी जाने बैगुनीको सम्झना झन् गहिरो भयो | बिर्सी जाने बैगुनीको सम्झना झन् गहिरो भयो | ||
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20:26, 23 सितम्बर 2016 के समय का अवतरण
परेलीको बर्सातले छातीभित्र पहिरो गयो
बिर्सी जाने बैगुनीको सम्झना झन् गहिरो भयो
लैबरीको भाका अझै गुञ्जिरन्छ पाखाभरि
चल्छ हुरी उडाउँदैन जो चित्र छ आँखाभरि
आँसुले नै आँखा धोएँ आँखा अझै पीरो भयो
बिर्सी जाने बैगुनीको सम्झना झन् गहिरो भयो
बित्छन् मेरा रातहरू सधैँ कोल्टे फेरिफेरि
मेरो खुसी उतै अल्झ्यो पापिनीको पोल्टोभरि
कसले सुन्छ मनको बह जब ऊ नै बहिरो भयो
बिर्सी जाने बैगुनीको सम्झना झन् गहिरो भयो