Changes

{{KKCatKavita}}
<poem>
जब भी संवाद करता हूँउम्र के इस पड़ाव परधीरे-धीरे अकेले होनाछूटना उन सबकाजिनसे ये जीवन थाक्या मृत्यु अकेली है?पृष्ठभूमि में कोईसाथ नहींकहीं भीकहीं तक भी नहींआलाप भरता अगर ये पथ अकेला हैतो फिर इस जीवन का क्या बात आगे बढ़ाऊँअर्थ?या उस आलाप में ध्यान लगाऊँगर्भाधान से श्मशानक्या इस स्वप्न कायही दुःखद अंत है?कौनजिसे अब तक जीयाभोगा, खाया-से शब्दपीयासंवाद से समयातीत क्या यह सब अर्थहीन था?तो फिर इस संसार काक्या सार है?जिसने-जिसने छोड़ा बंधनजो-जो बह गया घाट-घाटक्या पाया उन्होंने?लिख गये इतने ज्ञान के ग्रंथजिन्हें पढ़ना मुश्किलसमझना और भी कठिनजिंदगी में ढालना असंभव-साक्या ब्रह्मांड एक कठिन यात्रा है?क्यों यह जिज्ञासाकि कौन हैं?पर आलाप कहाँ से लीन आये हैं?एक सूनापनकहाँ जाना है?क्या उन चाँद-सा तारी होता सितारों काकोई ओर-छोर है?जैसे कहीं खड़े होंक्या आकाशगंगाओं काआकाश कोई प्रयोजन है?या बस धरा की रचना हीइस सारे ब्रह्मांड का अर्थ है?इस खेल में अकेलेक्या आनंद है?संवाद शिकारी शिकार करता हैया मनुष्य काल का भोजन बनता हैसिर्फ यही एक धरतीक्या संग्रहालय है?सभी जगह की डोर को ढूँढ़तेरचनाओं काबस चारों ओर आलापजिसे स्थापित किया हैआकाश को थरथराताइस सौरमंडल मेंबारकोटि-बार उसको उठाताकोटि प्रश्नकि धनुष टूट जायेउत्तार बहुत थोड़ेसंवा छूट जायेजैसे सागर की एक बूँदसंवाद छूट जायेजिससे जल की प्रकृति तो पता लगती हैपर सागर की विशालता नहींकहीं कोई ऐसा कोना नहींजहाँ से इस समस्त कोइससे अलग होकरइसकी संपूर्णता में देखे सकेंक्या ये विचार अपने आपमेंएक अनबूझ पहेली नहींपिंड, ब्रह्मांड, पार ब्रह्मांडइससे परे क्या है?बस गूँज हो चारों ओरयही प्रश्नअनहद नाद की।इस अकेलेपन का साथी है।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader, प्रबंधक
35,103
edits