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"आल्ता / आनंद खत्री" के अवतरणों में अंतर
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सुर्ख वो सपनों की परत | सुर्ख वो सपनों की परत |
14:41, 6 दिसम्बर 2017 के समय का अवतरण
सुर्ख वो सपनों की परत
जहाँ तुम चोरी चोरी जाते हो
उसकी मिट्टी के कुछ निशां
अल्ताई तुम्हारे पाओं में।
सुर्ख चाहत का बेसिरा नशा
जो रहते रहते ढलता है
अब भी एक लकीर बनकर
पावों के धीग पे खिलता है।
कुछ आस करीबी सपनों की
दिन धीरे धीरे ढलता है
माटी के दिए की बाती पर
इस शाम को लेकर जलता है।
हर बार तुम्हारे जीवन को
हर सौम्य सिन्दूरी आशीष रहे
हर साल तुम्हारी तीज पर
किसी चाहत का पैगाम रहे।