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− | प्रेम करते हुए लोग
| + | {{KKGlobal}} |
| + | {{KKRachna |
| + | |रचनाकार=गोविन्द माथुर |
| + | }} |
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| प्रेम करते हुए लोग | | प्रेम करते हुए लोग |
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| अक्सर रहते हैं चुप-चुप | | अक्सर रहते हैं चुप-चुप |
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− | प्रेम करते हुए लोग
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− | अक्सर रहते हैं बेखबर
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| प्रेम करते हुए लोग | | प्रेम करते हुए लोग |
− | कुछ नहीं सोचते
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− | प्रेम के सिवाय
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− | प्रेम करते हुए लोग
| + | अक्सर रहते हैं बेख़बर |
− | अक्सर रहते है घबराए | + | |
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− | प्रेम करते हुए लोग
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− | अक्सर रहते है चौकन्ने
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| प्रेम करते हुए लोग | | प्रेम करते हुए लोग |
− | अक्सर पकड़े जाते हैं
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− | पे्रम करते हुए
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− | ´´´´´´
| + | कुछ नहीं सोचते |
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| + | प्रेम के सिवाय |
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| + | प्रेम करते हुए लोग |
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| + | अक्सर रहते है घबराए |
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− | बेटिया¡
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− | बेटी का जन्म होने पर
| + | प्रेम करते हुए लोग |
− | छत पर जा कर नही बजायी जाती
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− | का¡से की थाली
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− | बेटी का जन्म होने पर
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− | घर के बुजुर्ग के चेहरे पर
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− | बढ़ जाती हैं चिन्ता की रेखाएं
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− | बेटिया¡ तो यूं ही
| + | अक्सर रहते है चौकन्ने |
− | बढ़ जाती हैं रूंख सी
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− | बिन सीचें ही हो जाती हैं ताड़ सी
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− | फैला लेती हैं जड़ें पूरे परिवार में
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− | बेटे तो होते हैं कुलदीपक
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− | नाम रोशन करते ही रहते हैं
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− | बेटिया¡ होती हैं घर की इज्जत
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− | दबी ढ़की ही अच्छी लगती हैं
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− | बेटियों का ह¡सना बेटियों का बोलना
| + | प्रेम करते हुए लोग |
− | बेटियों का खाना अच्छा नहीं लगता
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− | बेटिया¡ तो अच्छी लगती हैं
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− | खाना बनाती, बर्तन मा¡जती
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− | कपड़े धोती, पानी भरती
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− | भाईयों की डांट सुनती
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| + | अक्सर पकड़े जाते हैं |
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− | | + | प्रेम करते हुए |
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− | ससुराल जाने के बाद
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− | मांओं को बड़ी याद आती हैं बेटिया¡
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− | जैसे बिछुड गई हो उनकी कोई सहेली
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− | घर के सारे सुख-दुख किस से कहें वो
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− | बेटे तो आते हैं मेहमान से
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− | उन्हे क्या मालूम मा¡ क्या सोचती है
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− | बेटिया¡ ससुराल जा कर भी
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− | अलग नहीं होती जड़ों से
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− | लौट-लौट आती हैं
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− | सहेजने तुलसी का बिरवा
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− | जमा जाती है मा¡ का बक्सा टांक जाती है
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− | पिता के कमीज पर बटन
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− | बेटे का जन्म होने पर
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− | छत पर जा कर
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− | का¡से की थाली बजाती है बेटिया¡
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− | | + | |
− | ´´´´´´
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− | काम से लौटती स्त्रिया¡
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− | जिस तरह हवाओं में
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− | लौटती है खुशबू
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− | पेड़ों पर लौटती हैं चििड़या¡
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− | शाम कों घरों को लौटती हैं
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− | काम पर गई स्त्रिया¡
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− | | + | |
− | सारा दिन बदन पर
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− | निगाहों की चुभन महसूसती
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− | फूहड़ और अश्लील चुटकुलोंंंंंंं से ऊबी
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− | शाम को घरों को लौटती हैं
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− | काम पर गई स्त्रिया¡
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− | | + | |
− | उदास बच्चों के लिए टॉफिया¡
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− | उदासीन पतियों के लिए
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− | सिगरेट के पैकेट खरीदती
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− | शाम को घरों को लौटती है
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− | काम पर गई स्त्रिया¡
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− | | + | |
− | काम पर गई स्त्रियों के साथ
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− | घरों में लौटता है घरेलूपन
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− | चूल्हों में लौटती है आग
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− | दीयों में लौटती है रोशनी
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− | बच्चों में लौटती हैं ह¡सी
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− | पुरूषों में लौटता पौरूष
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− | आकाश अपनी जगह
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− | दिखाई देता हैं
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− | पृथ्वी घूमती है अपनी धुरी पर
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− | शाम को घरों को लौटती हैं
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− | काम पर गई स्त्रिया¡
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− | | + | |
− | नींद मेें स्त्री
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− | कई हजार वर्षों से
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− | नींद में जाग रही है वह स्त्री
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− | नींद में भर रही है पानी
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− | नींद में बना रही है व्यंजन
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− | नींद में बच्चों को
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− | खिला रही है दाल-चावल
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− | कई हजार वर्षों से
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− | नींद में कर रही है प्रेम
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− | पूरे परिवार के कपडे़ धोते हुए
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− | झूठे बर्तन साफ करते हुए
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− | थकती नहीं वह स्त्री
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− | हजारों मील नींद में चलते हुए
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− | जब पूरा परिवार
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− | सो जाता है सन्तुष्ट हो कर
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− | तब अन्धेरे में
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− | अकेली बिल्कुल अकेली
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− | नींद में जागती रहती है वह स्त्री
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− | ´´´´´´
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− | स्त्री की नींद
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− | उसने स्त्री की
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− | नींद में प्रवेश किया
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− | एक स्वप्न की तरह नहीं
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− | उसने स्त्री की
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− | देह में प्रवेश किया
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− | एक आत्मा की तरह नहीं
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− | देह के हर छिद्र को
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− | खोलता हुआ
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− | वह टहलता रहा
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− | स्त्री के यथार्थ में
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− | स्त्री ने मन के
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− | सभी दरवाजे खोल दिए
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− | उसने मन में प्रवेश नहीं किया
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− | एक रात जब वह
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− | प्रवेश कर रहा था
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− | स्त्री के स्वप्न में
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− | स्त्री के मन के
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− | सभी दरवाजे खुले थे
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− | वह सभी दरवाजों को
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− | बन्द करता हुआ
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− | स्त्री के स्वप्न से निकल कर
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− | किसी दूसरी स्त्री की
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− | नींद में प्रवेश कर गया
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− | ´´´´´´
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− | जली हुई देह
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− | वह स्त्री पवित्र
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− | अग्नि की लौ से गुजर कर
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− | आई उस घर में
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− | उसकी देह से फूटती रोशनी
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− | समा गई घर की दीवारों में
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− | दरवाजों और खिड़कियों में
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− | उसने घर की हर वस्तु
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− | कपड़े, बिस्तर, बर्तन
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− | यहा¡ तक कि झाडू को भी दी
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− | अपनी उज्जवलता
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− | दाल, अचार, रोटिया¡ को दी
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− | अपनी महक
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− | उसकी नींद, प्यास, भूख
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− | और थकान विलुप्त हो गई
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− | एक पुरूष की देह में
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− | पवित्र अग्नि की
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− | लौ से गुजर कर आई स्त्री को
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− | एक दिन लौटा दिया अग्नि को
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− | जिस स्त्री ने
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− | पहचान दी घर को
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− | उस स्त्री की पहचान नही थी
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− | जली हुई देह थी
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− | एक स्त्री की
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− | ´´´´´´
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− | छवि
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− | जैसा दिखता हू¡
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− | वैसा ह¡ू नहीं मैं
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− | जैसा ह¡ू वैसा
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− | दिखता नही
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− | जैसा दिखना चाहता ह¡ू
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− | वैसा भी नही दिखता
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− | बहुत कोशिश की
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− | अपनी छवि बनाने की
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− | वेशभूषा भी बदली
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− | बालो का स्टाइल भी
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− | बदलता रहा बार-बार
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− | फ्रेंचकट दाढ़ी भी रखी
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− | म¡ुह में पाईप भी दबाया
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− | जैसा दिखना चाहता था
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− | वैसा नही दिखा मैं
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− | लोगो ने नही देखा
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− | मुझे मेरी दृष्टि से
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− | लोगों ने देखा मुझे
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− | अपनी दृष्टि से
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− | में जैसा अन्दर से हू¡
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− | वैसा बाहर से नही ह¡ू
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− | जैसा बाहर से हू¡
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− | वैसा दिखना नही चाहता
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− | वैसा भी
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− | नही दिखना चाहता
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− | जैसा कि
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− | अन्दर से हू¡ मैं
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− | ´´´´´´
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