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"पूँजी के उत्तर / 'सज्जन' धर्मेन्द्र" के अवतरणों में अंतर
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+ | जीना है तो ताला मारो | ||
+ | कलम और जिह्वा पर | ||
+ | गली-मुहल्ले श्वान सूँघते | ||
+ | सब काग़ज़ सब अक्षर | ||
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+ | पौध प्रेम की सूख गई है | ||
+ | नफ़रत से डरकर | ||
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23:40, 20 जनवरी 2019 के समय का अवतरण
खिसिया जाते बात बात पर
दिखलाते ख़ंजर
पूँजी के उत्तर
अभिनेता ही नायक है अब
और वही खलनायक
जनता के सारे सेवक हैं
पूँजी के अभिभावक
चमकीले पर्दे पर लगता
नाला भी सागर
सबसे ज़्यादा पैसा जिसमें
वही खेल है मज़हब
बिक जाये जो
कालजयी है
उसका लेखक है रब
बिछड़ गये सूखी रोटी से
प्याज और अरहर
जीना है तो ताला मारो
कलम और जिह्वा पर
गली-मुहल्ले श्वान सूँघते
सब काग़ज़ सब अक्षर
पौध प्रेम की सूख गई है
नफ़रत से डरकर