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दुराव / महेन्द्र भटनागर
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|रचनाकार=महेन्द्र भटनागर
|संग्रह= मधुरिमा / महेन्द्र भटनागर
}}
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चांद को छिप-छिप झरोखों से सदा देखा किया<br>
और अपनी इस तरह आँखें चुरायीं चांद से !<br><br>
Pratishtha
KKSahayogi,
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