भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"हाइकु / अंजू घरबरन / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= |अनुवादक=कविता भट्ट |संग्रह=पहाड...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
− | |रचनाकार= | + | |रचनाकार=अंजू घरबरन |
|अनुवादक=कविता भट्ट | |अनुवादक=कविता भट्ट | ||
|संग्रह=पहाड़ी पर चंदा / कविता भट्ट | |संग्रह=पहाड़ी पर चंदा / कविता भट्ट | ||
पंक्ति 8: | पंक्ति 8: | ||
{{KKCatHaiku}} | {{KKCatHaiku}} | ||
<poem> | <poem> | ||
+ | 1 | ||
+ | नदी ये सोचे- | ||
+ | बहे क्यों न ये संग | ||
+ | तटस्थ तट | ||
+ | गंगा सोचणि | ||
+ | बग्दा किलै नि गैल | ||
+ | बैठयूँ तीरा | ||
+ | 2 | ||
+ | नदी तड़पे | ||
+ | सागर में अस्तित्व | ||
+ | खो के संतुष्ट | ||
+ | गंगा तड़फि | ||
+ | समोद्र माँ साकत | ||
+ | ख्वे कैं सन्तोसी | ||
+ | 3 | ||
+ | नदी का नीर | ||
+ | क्या जानेगा सागर | ||
+ | ठहरा खारा | ||
+ | गंगाळौ पाणी | ||
+ | क्या जणलु समोद्र | ||
+ | ठैरी यु लुण्यूँ | ||
+ | 4 | ||
+ | नदी बहती | ||
+ | पहाड़ों से निकल | ||
+ | बसाती घर | ||
+ | |||
+ | गंगा बगदी | ||
+ | पाड़ू बिटि निकळि | ||
+ | बसौंदी घौर | ||
+ | 5 | ||
+ | मगर, मीन | ||
+ | नदी -संग रहते | ||
+ | नहीं बहते। | ||
+ | |||
+ | मगर-माछी | ||
+ | गंगाळ-संग रैन्दा | ||
+ | नि बगदन | ||
+ | 6 | ||
+ | नदी व नारी | ||
+ | बहे सम धारा-सी | ||
+ | मान तो दे दो | ||
+ | |||
+ | गंगा-जनानि | ||
+ | बग्दी धारै कि तरौं | ||
+ | सन्मान त द्या | ||
+ | -0- | ||
</poem> | </poem> |
20:40, 3 मई 2021 के समय का अवतरण
1
नदी ये सोचे-
बहे क्यों न ये संग
तटस्थ तट
गंगा सोचणि
बग्दा किलै नि गैल
बैठयूँ तीरा
2
नदी तड़पे
सागर में अस्तित्व
खो के संतुष्ट
गंगा तड़फि
समोद्र माँ साकत
ख्वे कैं सन्तोसी
3
नदी का नीर
क्या जानेगा सागर
ठहरा खारा
गंगाळौ पाणी
क्या जणलु समोद्र
ठैरी यु लुण्यूँ
4
नदी बहती
पहाड़ों से निकल
बसाती घर
गंगा बगदी
पाड़ू बिटि निकळि
बसौंदी घौर
5
मगर, मीन
नदी -संग रहते
नहीं बहते।
मगर-माछी
गंगाळ-संग रैन्दा
नि बगदन
6
नदी व नारी
बहे सम धारा-सी
मान तो दे दो
गंगा-जनानि
बग्दी धारै कि तरौं
सन्मान त द्या
-0-