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विदाई / गैयोम अपोल्लीनेर / अनिल जनविजय
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24 अगस्त
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<poem>
बीत
रहा
गया
है पतझड़ का यह मौसम, जानी !
तोड़ी मैंने बकाइन के फूलों की टहनी, रानी !
याद रहे तुझे, इस धरती पर अब कभी न होगा मिलना
अनिल जनविजय
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