भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अम्मा का खत / केशव" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केशव |संग्रह=धूप के जल में / केशव }} Category:कविता <poem> ब...)
 
 
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
 
[[Category:कविता]]
 
[[Category:कविता]]
 
<poem>
 
<poem>
बच्चा
+
उस ख़त की भी
छत पर बैठा है  
+
एक भाषा है---
    रो रहा है 
+
अनगढ़
 +
बेतरतीब
 +
पर स्नेह की गन्ध में पगी
 +
रिश्ते में सगी
 +
कलम से कम
 +
विश्वास की चरम सीमा से
 +
अधिक ठगी
  
बच्चे की
+
ख़त का मजमून
किलकारियाँ आँगन में
+
उसे टेढ़े-मेढ़े
      गूँज रही हैं
+
पर सच्चे
बच्चा
+
सपने को
आरमान की ओर मुँह किये
+
    खोलता है  
      मुस्कुरा रहा है  
+
  
बच्चे की दुनिया में
+
जिसे बुना है
जिस तरह से चला जाता है कोई
+
बड़े यत्न से अम्मा ने
उसी तरह लौट भी आता है 
+
अपनी याद के महीन होते जा रहे
सचमुच
+
धागों से
एक आत्मा है  
+
 
बच्चा
+
कोंपल की तरह हर बार फ़ूटती
</Poem>
+
हरे पत्ते तक पहुँच
 +
अचानक कुम्हला जाती है  
 +
अम्मा की बूढ़ी आँख़ों में
 +
प्रतीक्षा
 +
 
 +
ख़त के आखर
 +
अम्मा के हाथ हैं
 +
ऊपर उठे हुए
 +
आशीर्वाद की मुद्रा में
 +
 
 +
ख़त के आखर
 +
बोलते-बोलते
 +
अचानक
 +
बन जाते हैं
 +
अम्मा की आँखें 
 +
</Poem>

20:50, 3 फ़रवरी 2009 के समय का अवतरण

उस ख़त की भी
एक भाषा है---
अनगढ़
बेतरतीब
पर स्नेह की गन्ध में पगी
रिश्ते में सगी
कलम से कम
विश्वास की चरम सीमा से
अधिक ठगी

ख़त का मजमून
उसे टेढ़े-मेढ़े
पर सच्चे
सपने को
     खोलता है

जिसे बुना है
बड़े यत्न से अम्मा ने
अपनी याद के महीन होते जा रहे
धागों से

कोंपल की तरह हर बार फ़ूटती
हरे पत्ते तक पहुँच
अचानक कुम्हला जाती है
अम्मा की बूढ़ी आँख़ों में
प्रतीक्षा

ख़त के आखर
अम्मा के हाथ हैं
ऊपर उठे हुए
आशीर्वाद की मुद्रा में

ख़त के आखर
बोलते-बोलते
अचानक
बन जाते हैं
अम्मा की आँखें