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सिलसिला / केशव

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{{KKRachna
|रचनाकार=केशव
|संग्रह=भविष्य के नाम पर धरती होने का सुख / केशव
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मुट्ठियों में
बँद है तूफानतफ़ान
सिगरेट के खाली पैकेट की तरह
फेंक देने के लिए जिसे
क्या हुआ
अगर झूठ बोलना पड़ता है खुद ख़ुद से
इस बात को ताक में रख दो
और एक अलग-सा दीखने वाला
लिबास पहनकर निकल जाओ
शिकार पर
जंगलों का सिलसिला तो यहांयहाँ
हर कहीं से शुरू होता है
क्या जरूरत ज़रूरत है
चिल्लाने की
अँधेरी अन्धेरी गली में
पोस्टर चिपकाने की
एक कॉफी का प्याला पीकर ही जब
सँकल्प पायदान बना दिया जाता है.है।
</poem>
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