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"एक चाय की चुस्की / उमाकांत मालवीय" के अवतरणों में अंतर

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एक चाय की चुस्की
  
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प्रेत स्वार्थ के ।
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भीतर ही भीतर
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बातचीत की ।
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इन्हीं के भरोसे क्या-क्या नहीं सहा
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छू ली है एक नहीं सभी इन्तहा ।
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एक कसम जीने की
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ढेर उलझने
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दोनों गर नहीं रहे
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बात क्या बने ।
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देखता रहा सब कुछ सामने ढहा
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मगर किसी के कभी चरण नहीं गहा ।

10:05, 27 अगस्त 2006 का अवतरण

एक चाय की चुस्की

एक कहकहा

अपना तो इतना सामान ही रहा ।


चुभन और दंशन

पैने यथार्थ के

पग-पग पर घेर रहे

प्रेत स्वार्थ के ।

भीतर ही भीतर

मैं बहुत ही दहा

किंतु कभी भूले से कुछ नहीं कहा ।


एक अदद गंध

एक टेक गीत की

बतरस भीगी संध्या

बातचीत की ।

इन्हीं के भरोसे क्या-क्या नहीं सहा

छू ली है एक नहीं सभी इन्तहा ।


एक कसम जीने की

ढेर उलझने

दोनों गर नहीं रहे

बात क्या बने ।

देखता रहा सब कुछ सामने ढहा

मगर किसी के कभी चरण नहीं गहा ।