भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बीती विभावरी जाग री / जयशंकर प्रसाद" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) छो (बीती विभावरी जाग री moved to बीती विभावरी जाग री / जयशंकर प्रसाद) |
(कोई अंतर नहीं)
|
18:24, 25 नवम्बर 2006 का अवतरण
लेखक: जयशंकर प्रसाद
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~
बीती विभावरी जाग री!
अम्बर पनघट में डुबो रही
तारा घट ऊषा नागरी।
खग कुल-कुल सा बोल रहा,
किसलय का अंचल डोल रहा,
लो यह लतिका भी भर लाई
मधु मुकुल नवल रस गागरी।
अधरों में राग अमंद पिये,
अलकों में मलयज बंद किये
तू अब तक सोई है आली
आँखों में भरे विहाग री।