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"पांच शे’र / यगाना चंगेज़ी" के अवतरणों में अंतर

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(नया पृष्ठ: शरबत का घूँट जान के पीता हूँ खूनेदिल। ग़म खाते-खाते मुँह का मज़ा ...)
 
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शरबत का घूँट जान के पीता हूँ खूनेदिल।
 
शरबत का घूँट जान के पीता हूँ खूनेदिल।
  
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इसी फ़रेब ने मारा कि कल है कितनी दूर।
 
इसी फ़रेब ने मारा कि कल है कितनी दूर।
  
एक आज-कल में अबस<>व्यर्थ</> दिन गँवायें है क्या-क्या।
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एक आज-कल में अबस<ref>व्यर्थ</ref> दिन गँवायें है क्या-क्या।
  
  
ख़ुशी में अपने क़दम चूम लूँ तो ज़ेबा<>मुनासिब</> है।
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ख़ुशी में अपने क़दम चूम लूँ तो ज़ेबा<ref>मुनासिब</ref> है।
  
वो लगज़िशों पै<>लड़खडा़ने पर</> मेरी मुसकराये है क्या-क्या॥
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वो लगज़िशों पै<ref>लड़खडा़ने पर</ref> मेरी मुसकराये है क्या-क्या॥
  
  
बस एक नुक्तये-फ़र्ज़ी का<>कल्पना-बिंदु का</> नाम है काबा।
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बस एक नुक्तये-फ़र्ज़ी का<ref>कल्पना-बिंदु का</ref> नाम है काबा।
  
किसी को मरकज़े-तहक़ीक़ का<>खोज के लक्ष्य का</> पता न चला॥
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किसी को मरकज़े-तहक़ीक़ का<ref>खोज के लक्ष्य का</ref> पता न चला॥
  
  
उमीदो-बीमने<>आशा-निराशा</> मारा मुझे दुराहे पर।
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उमीदो-बीमने<ref>आशा-निराशा</ref> मारा मुझे दुराहे पर।
  
 
कहाँ के दैरो-हरम? घर का रास्ता न मिला॥
 
कहाँ के दैरो-हरम? घर का रास्ता न मिला॥

09:33, 10 जुलाई 2009 का अवतरण

शरबत का घूँट जान के पीता हूँ खूनेदिल।

ग़म खाते-खाते मुँह का मज़ा तक बिगड़ गया॥


इसी फ़रेब ने मारा कि कल है कितनी दूर।

एक आज-कल में अबस<ref>व्यर्थ</ref> दिन गँवायें है क्या-क्या।


ख़ुशी में अपने क़दम चूम लूँ तो ज़ेबा<ref>मुनासिब</ref> है।

वो लगज़िशों पै<ref>लड़खडा़ने पर</ref> मेरी मुसकराये है क्या-क्या॥


बस एक नुक्तये-फ़र्ज़ी का<ref>कल्पना-बिंदु का</ref> नाम है काबा।

किसी को मरकज़े-तहक़ीक़ का<ref>खोज के लक्ष्य का</ref> पता न चला॥


उमीदो-बीमने<ref>आशा-निराशा</ref> मारा मुझे दुराहे पर।

कहाँ के दैरो-हरम? घर का रास्ता न मिला॥



शब्दार्थ
<references/>