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चराग़-ए-जीस्त<ref>जीवन-दीप</ref> बुझा दिल से इक धुआँ निकला।
लगा के आग मेरे घर से मेहरबाँ निकला॥
तड़प के आबला-पा<ref>पाँव के छाले</ref> उठ खड़े हुए आख़िर।आख़िर।
तलाशे-यार में जब कोई कारवाँ निकला॥
कलाम-ए- 'यास' से दुनिया में फिर इक आग लगी।
यह कौन हज़रते ‘आतिश’ का हमज़बाँ निकला॥