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"पुष्प विकास / रामनरेश त्रिपाठी" के अवतरणों में अंतर

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खोल-खोल द्वार फूल घर से निकल आए,
 
खोल-खोल द्वार फूल घर से निकल आए,
देख के लुटाए निज कोष सुबरन के॥
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देख के लुटाए निज कोष सुबरन के ।।
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वैसी छवि और कहीं खोजने सुगंध उडी,
 
वैसी छवि और कहीं खोजने सुगंध उडी,
पाई न, लजा के रही बाहर भवन के।
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पाई न, लजा के रही बाहर भवन के ।
 
मारे अचरज के खुले थे सो खुले ही रहे,
 
मारे अचरज के खुले थे सो खुले ही रहे,
तब से मुंदे न मुख चकित सुमन के॥
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तब से मुंदे न मुख चकित सुमन के ।।
 
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12:27, 5 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण

एक दिन मोहन प्रभात ही पधारे, उन्हें
देख फूल उठे हाथ-पांव उपवन के ।
खोल-खोल द्वार फूल घर से निकल आए,
देख के लुटाए निज कोष सुबरन के ।।

वैसी छवि और कहीं खोजने सुगंध उडी,
पाई न, लजा के रही बाहर भवन के ।
मारे अचरज के खुले थे सो खुले ही रहे,
तब से मुंदे न मुख चकित सुमन के ।।