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नसीम तेरी क़बा / अली सरदार जाफ़री
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08:20, 6 नवम्बर 2009
नसीम तेरी क़बा<ref>चोली</ref>, बूए-गुल<ref>फूल की महक</ref> है पैराहन<ref>वस्त्र</ref>
हया<ref>
शर्म
लज्जा
</ref> का रंग रिदाए-बहार<ref>बहार की चादर</ref> उढ़ाता है
तेरे बदन का चमन ऐसे जगमगाता है
कि जैसे सैले-सहत, जैसे नूर का दामन
द्विजेन्द्र द्विज
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