भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नसीम तेरी क़बा / अली सरदार जाफ़री
Kavita Kosh से
नसीम तेरी क़बा<ref>चोली</ref>, बूए-गुल<ref>फूल की महक</ref> है पैराहन<ref>वस्त्र</ref>
हया<ref>लज्जा</ref> का रंग रिदाए-बहार<ref>बहार की चादर</ref> उढ़ाता है
तेरे बदन का चमन ऐसे जगमगाता है
कि जैसे सैले-सहत, जैसे नूर का दामन
सितारे डूबते हैं चाँद झिलमिलाता है
शब्दार्थ
<references/>