भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बहुत दिनों तक / शलभ श्रीराम सिंह" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह |संग्रह=उन हाथों से परिचित हूँ…) |
|||
पंक्ति 23: | पंक्ति 23: | ||
कुछ भी न सोचती हुई | कुछ भी न सोचती हुई | ||
डूबी रहेगी अपने ही पानी में बहुत दिनों तक | डूबी रहेगी अपने ही पानी में बहुत दिनों तक | ||
+ | |||
+ | '''रचनाकाल : 1991, नई दिल्ली | ||
</poem> | </poem> |
20:17, 20 दिसम्बर 2009 का अवतरण
पृथ्वी हिलेगी नहीं इस बार
धधकेगी भी नहीं
डूब जाएगी अपने ही पानी में अकस्मात।
अपने विस्तार के साथ
अपने ही पानी में डूबी पृथ्वी
केवल प्रायश्चित करेगी शताब्दियों तक।
यह सब देखता रहेगा निरभ्र आकाश
नक्षत्र-लीला में ग्रह-विलय की तरह चुपचाप।
सूर्य के संस्पर्श की प्रतीक्षा करेगी
जल में समाधिस्थ वसुंधरा
निर्विकार-निश्छल-निर्लिप्त
मनुष्य के विषय में
कुछ भी न सोचती हुई
डूबी रहेगी अपने ही पानी में बहुत दिनों तक
रचनाकाल : 1991, नई दिल्ली