भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"दिल को लगती है / वली दक्कनी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो
छो
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
रचनाकार: [[वली मोहम्मद 'वली']]
+
{{KKGlobal}}
[[Category:वली मोहम्मद 'वली']]
+
{{KKRachna
[[Category:कविताएँ]]
+
|रचनाकार=वली मोहम्मद 'वली'
 +
}}
 
[[Category:गज़ल]]
 
[[Category:गज़ल]]
 
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*
 
  
 
दिल को लगती है दिलरुबा की अदा <br>
 
दिल को लगती है दिलरुबा की अदा <br>

15:25, 7 जुलाई 2007 का अवतरण

दिल को लगती है दिलरुबा की अदा
जी में बसती है खुश-अदा की अदा

गर्चे सब ख़ूबरू हैं ख़ूब वले
क़त्ल करती है मीरज़ा की अदा

हर्फ़-ए-बेजा बजा है गर बोलूँ
दुश्मन-ए-होश है पिया की अदा

नक़्श-ए-दीवार क्यूँ न हो आशिक़
हैरत-अफ़ज़ा है बेवफ़ा की अदा

गुल हुये ग़र्क आब-ए-शबनम में
देख उस साहिब-ए-हया की अदा

ऐ "वली" दर्द-ए-सर की दारू है
मुझको उस संदली क़बा की अदा