भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दिल को लगती है / वली दक्कनी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दिल को लगती है दिलरुबा की अदा
जी में बसती है खुश-अदा की अदा

गर्चे सब ख़ूबरू हैं ख़ूब वले
क़त्ल करती है मीरज़ा की अदा

हर्फ़-ए-बेजा बजा है गर बोलूँ
दुश्मन-ए-होश है पिया की अदा

नक़्श-ए-दीवार क्यूँ न हो आशिक़
हैरत-अफ़ज़ा है बेवफ़ा की अदा

गुल हुये ग़र्क आब-ए-शबनम में
देख उस साहिब-ए-हया की अदा

ऐ "वली" दर्द-ए-सर की दारू है
मुझको उस संदली क़बा की अदा