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"जाला / रमेश कौशिक" के अवतरणों में अंतर

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<poem><br />समय की स्लेट<br />और पानी की प्लेट पर<br />कितना ही लिखो<br />कुछ भी नहीं रहता<br />बचपन से जानता हूँ<br />लेकिन आज भी कोशिश में लगा हूँ।</poem>
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<poem><br />मकड़ी जाला बुनती है
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तुम भी जाला बुनते हो
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मैं भी जाला बुनता हूँ
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हम सब जाले बुनते हैं।
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जाले इसीलिए हैं
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कि वे बुने जाते हैं
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मकड़ी के द्वारा
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या हम सब इसीलिए हैं
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या एक-दूसरे के बुने
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जब हम जाले बुनते हैं
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तब चुप-चुप बुनते हैं
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लेकिन जब उनमें फँसते हैं
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तब बहुत शोर करते है।
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16:51, 25 जून 2010 के समय का अवतरण


मकड़ी जाला बुनती है
तुम भी जाला बुनते हो
मैं भी जाला बुनता हूँ
हम सब जाले बुनते हैं।

जाले इसीलिए हैं
कि वे बुने जाते हैं
मकड़ी के द्वारा
तुम्हारे, मेरे
या हम सब के द्वारा।

मकड़ी, तुम या मैं
या हम सब इसीलिए हैं
कि अपने जालों में
या एक-दूसरे के बुने
जालों में फँसे।

जब हम जाले बुनते हैं
तब चुप-चुप बुनते हैं
लेकिन जब उनमें फँसते हैं
तब बहुत शोर करते है।