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जाला / रमेश कौशिक
Kavita Kosh से
मकड़ी जाला बुनती है
तुम भी जाला बुनते हो
मैं भी जाला बुनता हूँ
हम सब जाले बुनते हैं।
जाले इसीलिए हैं
कि वे बुने जाते हैं
मकड़ी के द्वारा
तुम्हारे, मेरे
या हम सब के द्वारा।
मकड़ी, तुम या मैं
या हम सब इसीलिए हैं
कि अपने जालों में
या एक-दूसरे के बुने
जालों में फँसे।
जब हम जाले बुनते हैं
तब चुप-चुप बुनते हैं
लेकिन जब उनमें फँसते हैं
तब बहुत शोर करते है।