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"आत्माव्लोकन / शमशाद इलाही अंसारी" के अवतरणों में अंतर

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'''रचनाकाल : 13.02.1988
 
'''रचनाकाल : 13.02.1988
 
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01:56, 10 जुलाई 2010 का अवतरण

शुभकामनायें भेजते हो
उपदेश देते हो
प्रसन्न रहने का।

सदैव कामना करते हो
दूसरों की ख़ुशियों के लिए
किन्तु, कभी आत्माव्लोकन किया है?
स्वयं अपने को अपने से मिलवाया है?

तुम कहते हो, तुम दुख़ के सागर हो
सुख मिलन तुम्हारे समक्ष
मात्र स्वप्न में ही सम्भव है
तुम अपने को अधूरा कहते हो
क्यों समझते हो अक्षम स्वयं को?
तुम स्वयं खुश क्यों नहीं रह सकते?

क्यों देते हो प्राथमिकता
शारीरिक अपंगता को?

मैं पूछता हूँ तुमसे
क्या तुम्हारा अन्तर-मानव भी अपूर्ण है?
मैं कहता हूँ तुमसे,
देखो अपने भीतर
वहाँ एक सम्पूर्ण आत्मा है
कई मार्ग हैं इससे मिलने के
पहचानों इसे
इसे जीवित रखो।

जो तुम होना चाहते हो
कोई असंभव कार्य नहीं।
यह लक्ष प्राप्य है
इसके लिये मात्र
दृढ निश्चय ही आवश्यक है

सोचो भला, स्वयं निराश व्यक्ति
बुझे दीपक भाँति
कैसे प्रकाश दे सकता है?
कैसे दे सकता है वरदान
आश्वासन, शुभ-कामनायें
दूसरों को सलाह
सुखी रहने की?


रचनाकाल : 13.02.1988