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"शिक्षा-पद्धति / काका हाथरसी" के अवतरणों में अंतर

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अपढ श्रमिक को मिल रहे चालीस रुपये रोज़
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|रचनाकार=काका हाथरसी
 
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चालीस रुपये रोज़, इल्म को कूट रहे हैं ।
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ग्रेजुएट जी रेल और बस लूट रहे हैं    
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पकड़े जाँए तो शासन को देते गाली
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बाबू सर्विस ढूँढते, थक गए करके खोज ।
 
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अपढ श्रमिक को मिल रहे चालीस रुपये रोज़ ॥
देख लाजिए शिक्षा-पद्धति की खुशहाली  ॥
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चालीस रुपये रोज़, इल्म को कूट रहे हैं ।
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ग्रेजुएट जी रेल और बस लूट रहे हैं ॥
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पकड़े जाँए तो शासन को देते गाली ।
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देख लाजिए शिक्षा-पद्धति की खुशहाली॥
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12:10, 18 सितम्बर 2014 के समय का अवतरण

बाबू सर्विस ढूँढते, थक गए करके खोज ।
अपढ श्रमिक को मिल रहे चालीस रुपये रोज़ ॥
चालीस रुपये रोज़, इल्म को कूट रहे हैं ।
ग्रेजुएट जी रेल और बस लूट रहे हैं ॥
पकड़े जाँए तो शासन को देते गाली ।
देख लाजिए शिक्षा-पद्धति की खुशहाली॥