अचानक हवा के निशाने लगे
जो सूरज उठा रोशनी बांटने बाँटने
तो सब रात के गीत गाने लगे
हमें धुन कि मंजिल मंज़िल तो आए करीब क़रीब
सफ़र की ये कोशिश ठिकाने लगे
जो कल तक थे हवा के मुहाफिज मुहाफ़िज़ यहाँ
वही आज चेहरे छुपाने लगे
ये शीशे ये जर्रे ज़र्रे तो बेजान थे
मगर धूप में जगमगाने लगे
फ़रिश्ता नहीं हूँ यही खौफ ख़ौफ़ हैखुदाख़ुदा, जाने कब आजमाने लगे
ग़ज़ल तुमको पढनी थी सर्वत मगर
तुम आज अपना दुखड़ा सुनाने लगे</poem>