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"बंजारे बंजारों में / उदयप्रताप सिंह" के अवतरणों में अंतर
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+ | ख़ुशबू नहीं प्यार की महकी जिनके सोच-विचारों में । | ||
नागफनी की चुभन मिली उनके दैनिक व्यवहारों में । | नागफनी की चुभन मिली उनके दैनिक व्यवहारों में । | ||
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तू पतझर के पीले पत्तों पर पग धरते डरता है | तू पतझर के पीले पत्तों पर पग धरते डरता है | ||
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लोग सफलता खोज चुके हैं लाशों के अंबारों में । | लोग सफलता खोज चुके हैं लाशों के अंबारों में । | ||
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महलों के रहने वाले कुछ दूरी रखकर मिलते हैं | महलों के रहने वाले कुछ दूरी रखकर मिलते हैं | ||
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औरत ही माँ, बहन, आत्मजा, पत्नी और प्रेमिका है | औरत ही माँ, बहन, आत्मजा, पत्नी और प्रेमिका है | ||
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अगर उजाला दे न सका तू ‘उदय’ अंधेरी बस्ती को | अगर उजाला दे न सका तू ‘उदय’ अंधेरी बस्ती को | ||
− | + | क्या होगा यदि लिख भी गया कल नाम तेरा फ़नकारों में । | |
− | क्या होगा यदि लिख भी गया कल नाम तेरा | + | </poem> |
22:23, 17 अक्टूबर 2010 का अवतरण
ख़ुशबू नहीं प्यार की महकी जिनके सोच-विचारों में ।
नागफनी की चुभन मिली उनके दैनिक व्यवहारों में ।
तू पतझर के पीले पत्तों पर पग धरते डरता है
लोग सफलता खोज चुके हैं लाशों के अंबारों में ।
महलों के रहने वाले कुछ दूरी रखकर मिलते हैं
पल-भर में घुल-मिल जाते हैं बंजारे बंजारों में ।
औरत ही माँ, बहन, आत्मजा, पत्नी और प्रेमिका है
बदली नज़रों से पड़ता है, कितना फ़र्क नज़ारों में ।
अगर उजाला दे न सका तू ‘उदय’ अंधेरी बस्ती को
क्या होगा यदि लिख भी गया कल नाम तेरा फ़नकारों में ।