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आ बैठे बातें करें / रामस्वरूप किसान
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19:38, 30 अक्टूबर 2010
क्षमा करना
अवकाश ही नहीं मिला
ये
दांत
दाँत
कब टूट गए तुम्हारे ?
और ये सफ़ेद बाल ?
आ बैठ, ग़ौर से
देखूं
देखूँ
तुझे
कहीं इसी दौड़-भाग में
यह ज़िंदगी भाग न जाए ।
अनिल जनविजय
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