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आ बैठे बातें करें / रामस्वरूप किसान
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आ बैठे बातें करें
आ बैठे बातें करें
एक दूजे को देखें
कितने वर्ष बीत गए
साथ-साथ रहते हुए,
कितने क़रीब-क़रीब रहे हम
किंतु देख नहीं सके-एक दूजे को
झूठ नहीं कहता
मैं तो नहीं देख सका
तुम्हारी तुम जानो ।
भोगा अवश्य है
तुम्हारा अंग-अंग
किंतु देख नहीं पाया
ठुड्डी का तिल / जिसका रंग
मेरी अनभिज्ञता के अंधकार में जा मिला
क्षमा करना
अवकाश ही नहीं मिला
ये दाँत कब टूट गए तुम्हारे ?
और ये सफ़ेद बाल ?
आ बैठ, ग़ौर से देखूँ तुझे
कहीं इसी दौड़-भाग में
यह ज़िंदगी भाग न जाए ।
अनुवाद : नीरज दइया