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ब्याही
फिर भी अनब्याही है,
पति ने नहीं छुआ;
काम न आई मान-मनौती,
कोई एक दुआ;
आँखे भर-भर
झर-झर मेघ हुआ,
देही नेह विदेह हुआ,
रचनाकाल: ०७-०५-१९७६